-फॉस्फोरस को पहली बार 1669 में हेनिंग ब्रांड द्वारा अलग किया गया था और 1777 में एंटोनी लावोज़ियर द्वारा एक तत्व के रूप में मान्यता दी गई थी

-पीएच 6.0-6.5 . के फास्फोरस की अधिकतम उपलब्धता
रिजर्व फॉस्फेट के रूप में जाने जाने वाले वोक्यूल्स में पाए जाने वाले अकार्बनिक   फॉस्फेट आवश्यकता होने पर साइटोप्लाज्म को आपूर्ति की जाती है

-फॉस्फोरस बीज और फलों में फाइटिन के रूप में संचित रहता है
-फॉस्फोरस वनस्पति ऊतक में रिक्तिका के अकार्बनिक फॉस्फेट के रूप में आरक्षित है
pH 7.2 < H2PO4-
Ph 7.2. > HPO4-2
Higher pH for P04-2
सुगरफास्फेट -साइटोप्लाज्म
फास्फोलिपिड -क्लोरोप्लास्ट
न्यूक्लिक फास्फेट - न्यूक्लियस

-बीज में नाइट्रोजन का भंडारण झिल्ली में प्रोटीन के रूप में होता है जिसे प्रोटीन बॉडी कहा जाता है प्रोटीन बॉडी प्रोटीन बॉडी में फॉस्फोरस कैल्शियम या मैग्नीशियम भी होता है

-प्रजनन अंग फल, बीज कंद आदि की वृद्धि और विकास के लिए आवश्यक है फास्फोरस की भारी सांद्रता पौधे के सक्रिय रूप से बढ़ने वाले भाग के विभज्योतक क्षेत्र में पाई जाती है

-ऊर्जा भंडारण और हस्तांतरण और जड़ मे वृद्धि

-बीज और फल की शीघ्र परिपक्वता करता है

-एडीपी और एटीपी ऊर्जा मुद्रा के रूप में कार्य करते हैं

-फॉस्फोरस जड़ सड़न रोग के प्रति पौधे की सहनशीलता बढ़ाता है
- फॉस्फोरस जड़ से प्ररोह के अनुपात को बढ़ाता है


-पौधे का तेजस्वी और पुराने पत्तों का गहरा हरा रंग जो सर्व की कमी की स्थिति में भूरे से नीले हरे रंग में बदल जाता है

-मक्का और घास में पत्ती के किनारे का बैंगनी रंग

-चुकंदर में अंकुर के समय गहरे हरे रंग की पत्तियां जो परिपक्वता की ओर भूरे रंग की जालीदार शिराएं बन जाती हैं

-फॉस्फोरस की कमी से पौधों की नीचे की एवं पुरानी पत्तियां गहरी हरे रंग की हो जाती है जो बाद में लाल पर्पल एंड एवं बैंगनी या पीथल रंग की हो जाती है

-फॉस्फोरस की कमी से जड़ों का विकास रुक जाता है

-फॉस्फोरस की कमी से पत्तियां हंसिया आकार की हो जाती है

-फॉस्फोरस ही एक ऐसा तत्व है जिसकी कमी से पौधा अपना जीवन चक्र पूर्ण नहीं कर सकता है इसलिए इसे की ऑफ लाइफ कहते हैं




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