सरसों एक प्रमुख तिलहन फसल है जिसमें 40 से 42% तेल की मात्रा पाई जाती है, जिसका प्रयोग सामान्यतः हर घर में किया जाता है ।सरसों संपूर्ण प्रदेश में की जाती है, इसलिए राजस्थान का सरसों उत्पादन में प्रथम स्थान है ।
किसान भाइयों फसलों में उत्पादकता में बढ़ोतरी हेतु पादपों में रोगों एवं कीटों का प्रकोप नहीं होना चाहिए। फसल लगाने से पूर्व ही बीजोपचार कर काफी हद तक रोग, कीटों को नियंत्रित किया जा सकता है।
▪️ सफेद रोली रोग - यह बीज एवं मृदा जनित रोग है ।बुआई के 30 40 दिन बाद पत्तियों की ऊपरी सतह पर सफेद भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं।
इस रोग की रोकथाम हेतु बीज को 2.5 ग्राम मैनकोज़ेब प्रति किलो की दर से उपचारित करना चाहिए और लक्षण दिखाई देने पर मैनकोज़ेब 75% wp@500 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।
▪️ छाछया रोग -  पुराने पत्तों पर सफेद रंग के धब्बे प्रकट होते हैं जो कि संपूर्ण पत्तियों पर तेजी से फैलने लगते हैं इस रोग के बचाव हेतु सल्फर 80% wdg और 0.1 प्रतिशत कैराथियान का छिड़काव करना चाहिए।
▪️ तुलासिता रोग - नई पत्तियों पर मटमैलै रंग के धब्बे दिखाई देते है इससे बचाव हेतु मेटालेक्सल 4% और मैंकोजेब 64% wp@800 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
▪️तनागलन रोग -  पत्तों पर सफेद रंग के लंबे धब्बे दिखाई देते हैं जो कि तने को गलाकर पौधे को मुरझा देते हैं इससे बचाव हेतु कार्बेंडाजिम 12% और मैनकोज़ेब 63% wp @400 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी का छिड़काव करें।
▪️ झुलसा रोग - पत्तियों की निचली सतह पर गोलाकार भूरे धब्बे तेजी से फैल कर पतियों को गिरा देते हैं और रोगग्रस्त फलियों का दाना सिकुड़ जाता है इसके बचाव हेतु मेटालेक्सल 8% और मैंकोजेब 64% wp @500 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी का छिड़काव करें।
▪️दीमक से बचाव हेतु क्लोरोपाॅयरीफाॉस 20 EC का 4 लीटर प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करना चाहिए ।
▪️तेल की गुणवत्ता में बढ़ोतरी हैतु  सिंगल सुपर फास्फेट का उपयोग करना चाहिए ।
▪️सरसों की फसल को पाले से बचाने हेतु 0.1 % H2So4 का छिड़काव करना चाहिए।



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