⭕ राजस्थान में मुख्यतः आठ प्रकार की मृदा पाई जाती है।
1. रेतीली - राजस्थान में सर्वाधिक क्षेत्र में पाई जाने पाए जाती है प्रमुख रूप से पश्चिम मरुस्थली जिलो में पाई जाती है ,कम वर्षा के कारण इनमें लवणों की अधिकता होती है इस मृदा के कणों का आकार बड़ा होने के कारण जल धारण क्षमता कम होती है।
2. भूरी रेतीली मृदा- राजस्थान में प्रमुख रूप से यह अरावली के पश्चिम भागों में पाई जाती है इस मृदा में नाइट्रोजन कार्बनिक पदार्थों की कमी एंव फास्फोरस की अधिकता होती है ।
3.दोमट मृदा- राजस्थान में प्रमुख रूप से यह पूर्वी क्षेत्रों में पाई जाती है इस मृदा में चुना फास्फोरस ह्यूमस की कमी एंव नाइट्रोजन की अधिकता होती है ,यह मृदा कृषि उपजाऊ होती है ।
4. लाल पीली मृदा - इस मृदा का रंग लाल होता है क्योंकि इसमें आयरन की मात्रा अधिक होती है इसमें नाइट्रोजन कैल्शियम कार्बनिक योगिकों की कमी होती है।
5. काली मृदा - इस मृदा का रंग काला होता है एवं यह खेती के लिए सर्वोत्तम मानी गई है कपास की खेती के लिए उपयुक्त होने के कारण इसे काली कपास मृदा भी कहते हैं ।
6. लाल व काली मृदा- इस मृदा मे लाल व काली मृदा के गुण होते हैं जिस कारण इसे लाल एवं काली मृदा कहते हैं इनमें नाइट्रोजन फॉस्फोरस कैल्शियम की मात्रा कम होती है ।
7. लाल दोमट मृदा- इसमें चुना, पोटास , फास्फोरस की मात्रा कम होती है तथा यह मिट्टी डूंगरपुर उदयपुर क्षेत्रों में पाई जाती है।
8. पर्वतीय मृदा - इस प्रकार की मृदा पर्वतीय क्षेत्रों के आसपास पाई जाती है तथा यह मृदा खेती के लिए उपयुक्त नहीं है क्योंकि उनकी गहराई कम होती है।
⭕ मृदा कणाकार- मृदा में बालू सिल्ट मृतिका के कणों के अनुपात को मृदा कणाकार कहा जाता है, मृदा के भौतिक गुणों का अध्ययन करने हेतु इनके कणों के आकार की जानकारी अति आवश्यक है।
आई एस एस एस के अनुसार मृदा कणों का वर्गीकरण
कंकड़ - 2.00 mm से ज्यादा
मोटी बालू - 0.2 - 2.0 mm
सिल्ट. -. 0.02 -0.002 mm
क्ले. -. 0.002 mm से कम
⭕ मृदा संरचना - मृदा की उत्पादन क्षमता एंव मृदा आकार की जानकारी के लिए मृदा संरचना का अध्ययन किया जाता है । कार्बनिक खाद , सिंचाई एवं उर्वरक से मृदा प्रभावित होती है।
1.प्लेटी संरचना - इस संरचना में क्षेतिज अक्ष अधिक जो होता है तथा प्लेट के समान व्यवस्थित होती है। यह वर्जन मृदाओं के अत्यधिक पाई जाती है ।
2. प्रीज्म संरचना - इस संरचना में उर्ध्वाकार अक्ष अधिक होता है, यह शुष्क एवं अर्धशुष्क क्षेत्रों मे पाया जाती है। यह प्रिज्मेटिक एवं कोलूमीनार दो प्रकार की होती है।
3.ब्लॉकी संरचना- इस संरचना में अनियमित आकार की षट्भूजाकार संरचना का विकास होता है ,इस प्रकार की मृदा वायु ,जल निकास एंव जड़ विकास हेतु उपयुक्त है।
4. गोलाकार संरचना- इस संरचना में कणों का आकार गोलाकार होता है ,इनमें पानी ग्रहण करने की क्षमता की कमी के कारण कणों को एक दूसरे से आसनी से अलग अलग किया जा सकता है।
Post a Comment