सरसों की खेती के बारे में विस्तार से जानकारी



वैज्ञानिक नाम - ब्रेसिका जूंसिया
फैमिली - क्रुसीफेरी
उत्पत्ति - दक्षिण पश्चिम एशिया
फल - सिलिकुआ

जलवायु
ठंडा एवं साफ मौसम
यह रबी की फसल है इसके लिए 18 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है।
15 सितंबर से 15 अक्टूबर तक का मौसम बुवाई के लिए उपयुक्त होता है।
सरसों में फूल बनते समय वर्षा एवं नमी नहीं होनी चाहिए क्योंकि इनसे कीट और रोग का खतरा ज्यादा हो जाता है।
पाले के प्रति सरसों अधिक संवेदनशील होती है।

मृदा
बलुई दोमट मृदा
दो बार हल्की जूताई करके पाटा लगाकर खेत को समतल कर देना चाहिए।

बीज
लक्ष्मी ,स्वर्ण ,ज्योति, रोहिणी ,सौरभ ,सीता, जगन्नाथ, बायो 902 ,पूसा कल्याणी

बीजदर
सरसों की खेती के लिए शुष्क क्षेत्र में 4 से 5 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टर उचित है एंव सिंचित क्षेत्र के लिए 2 से 3 किलो बीज उचित है।
सरसों का बीज छोटा होता है जिस कारण इसको 3- 5 सेंटीमीटर की गहराई में ही होना चाहिए।
सरसों की बुवाई से पहले बीज को एप्रोन नामक दवा से बीज उपचार करना चाहिए।
पौधे से पौधे की दूरी 30 गुना 10 रखी जाती है इस प्रकार एक हेक्टर में 3,33,300 हो जाते हैं।

खाद एवं उर्वरक
‌सरसों में 80 किलोग्राम नाइट्रोजन 60 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश एवं 250 किलो जिप्सम की। पूर्ति करनी चाहिए।

सिंचाई
फूल आने से पूर्व एवं फली बनते समय सिंचाई करने आवश्यक होती है।

विश्व में सरसों का सर्वाधिक उत्पादन कनाडा में होता है तथा भारत देश सरसों उत्पादन में दूसरे स्थान पर आता है।



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