नमस्कार दोस्तों आज हम जानेंगे की हमारे खेत की जो मिट्टी होती है वह किस प्रकार से धीरे-धीरे खराब हो जाती है और उस मृदा को पून: उर्वर बनाई जा सकती है।



हमारे खेत की मृदा में क्लोरीन सल्फर कार्बोनेट सोडियम कैल्शियम मैग्निशियम की सांद्रता ज्यादा होने पर धीरे धीरे यह लवण एंव क्षार मिट्टी में जमा हो जाते हैं और मिट्टी की उर्वर क्षमता को प्रभावित करते हैं जिस कारण पौधों की बढ़वार एवं उत्पादन क्षमता में कमी आती है।

मिट्टी में लवण एवं क्षार जमा होने पर मिट्टी की विद्युत चालकता EC, पीएच PH, विनिमय सोडियम प्रतिशत ESP, प्रभावित होती है जिस कारण इनको अलग-अलग नामों से वर्गीकृत किया जाता है।

लवणीय मृदा
ऐसी मृदा जिसमें लवण जमा हो जाते हैं और मृदा की ऊपरी परत सफेद हो जाती है।
EC > 4.0
PH < 8.5
ESP < 15
ऐसी मृदा का निर्माण शुष्क क्षेत्रों में जहां पर वर्षा 55 सेंटीमीटर से कम होती है अन्यथा जिस क्षेत्र के पानी में लवण घूलें हुए होते हैं और जिन खेतों में जल निकास की उचित व्यवस्था नहीं होती है तथा तापमान ज्यादा होता है जिस कारण पानी का वाष्पीकरण हो जाता है इन्हें खेतों में लवणीय मृदा बन जाती है।
किसान भाई जल निकास की व्यवस्था उचित करें।
सिंचाई के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले पानी का उपयोग करें।
ऊपर की सफेद परत को खूरच कर बाहर निकालें।

क्षारीय मृदा
इस प्रकार की मृदा में क्षार के आयनों का मृदा में जमाव हो जाता है जिस कारण मृदा कमजोर हो जाती है ।
सामान्यत: इस प्रकार की समस्या indo-gangetic plan के  पास के क्षेत्रों में
उत्तर प्रदेश , पंजाब , हरियाणा के पास आती है।
EC < 4.0
PH > 8.5
ESP > 15
किसान भाइयों के द्वारा इस प्रकार के खेत में मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ाने के लिए कैल्शियम की पूर्ति की जाती है।
जिसके लिए जिप्सम और पायराइट कार्बनिक खाद खेत में डाला जाता है।
क्षारीय मृदा की ऊपरी परत काले रंग की होती है जिस कारण इसे उसर मृदा भी कहते हैं।

क्षारीय मृदा को सुधारने के लिए किसानों के द्वारा निम्न प्रयास किए जाते हैं।
खेत की ऊपरी परत को खूर्च कर दूर करना।
खेत में पानी को एकत्र करके क्षार घूलने के बाद खेत से पानी बाहर निकालना।
खेतों में छोटी-छोटी खाईयां बनाना।
खेत में जिप्सम ,सल्फर ,पाइराइट, सल्फ्यूरिक एसिड, लाइम सल्फर जैसे रसायन का प्रयोग करना।
फसलों के जल क्षेत्र में पानी को एकत्र नहीं होने देना।
सिंचाई के लिए जल की गुणवत्ता अच्छी होनी चाहिए।
सिंचाई उचित समय करना।
खेतों में वाष्पोत्सर्जन की प्रक्रिया को कम करना।
कार्बनिक खाद, गोबर खाद ,हरी खाद का प्रयोग करना।
क्षारीय खाद का प्रयोग कम करना।
जिंक सल्फेट का उपयोग करना।
जंगल का विस्तार करना।
 
लवणीय -  क्षारीय मृदा
इस प्रकार की मृदा में लवण एंव क्षार दोनों मृदा के ऊपर जम जाते हैं जिस कारण मृदा की भौतिक एवं रसायन स्थिति बहुत खराब हो जाती है ।
EC > 4.0
PH < 8.5
ESP > 15

इस प्रकार से खेत की उर्वर क्षमता प्रभावित होती है और विभिन्न प्रकार के प्रबंधन करके मृदा में पौधों की बढ़वार एवं उत्पादन लिया जा सकता है।

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